ऊधौ ब्रज जनि गहरु लगावहु।
तुम ब्रजनारि जानि मन सकुचत, कहि धौ जोग सुनावहु।।
बानी कहत समुझि वै लैहै, कही हमारी मानौ।
बिरह दाह यह सुनत बुझैहै, मानौ अनलहिं पानी।।
अबही जाहु विकल सब गोपी, जोग बचन कहि पोपौ।
‘सूर’ नंद बाबा जसुमति कौ, बेगि जाइ सतोषौ।। 3433।।