(ऊधौ) बात कहौ हरि आवन की।
अवधि बदी सो बीत गई है, और सुनी उत सावन की।।
कहँ लगि बिथा कहौ सुनि मधुकर, निठुराई मन भावन की।
ना जानियै कहाँ तै सीखी, छतियाँ बिरह जरावन की।।
निसि दिन नैननि नीर बहत है, जैसै नदिया सावन की।
‘सूरदास’ प्रभु सौ अलि कहियौ, बानि खरी तरसावन की।। 177 ।।