ऊधौ निरगुनहिं कहत तुमही सो लेहु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्हरौ


ऊधौ निरगुनहिं कहत तुमही सो लेहु।
सगुन मूरति नंदनंदन, हमहिं आनि देहु।।
अगम पंथ परम कठिन, गौन तहाँ नाहिं।
सनकादिक भूलि फिरे, अबला कहँ जाहिं।।
पंच तत्त्व प्रकृति परे, अपर कैसै जानी।
मन बच अरु कर्म रहित, बेदहु की वानी।।
कहिऐ जो निबहे की, अकथ न कहुँ सोही।
‘सूर’ स्याम मुख सुचद, जुवति नलिनि मोही।।3899।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः