ऊधौ तुम क्यौ नहिं जोग करौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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ऊधौ तुम क्यौ नहिं जोग करौ।
ऐसी सिद्धि छाँड़ि कित डोलत, औरनि सीख धरौ।।
हरि कौ रूप सु रूप अनूपम, यही हमारै ध्यान।
निसि बासर नहिं टरत हृदय तै, ब्रज के जीवनप्रान।।
कहा भयौ जौ निकट बसत हौ, हरि के सखा कहावत।
तन तजि ‘सूर’ ज्ञान उर रोहत, यह नीरस किहिं भावत।।3699।।

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