ऊधौ जोग बिसरि जनि जाहु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


ऊधौ जोग बिसरि जनि जाहु।
बाँधौ गाँठि छूटि परिहै कहूँ, फिरि पाछे पछिताहु।।
ऐसी बहुत अनूपम मधुकर, मरम न जानै और।
ब्रज वनितनि के नहीं काम की, है तुम्हरेई ठौर।।
जो हित करि पठयौ मनमोहन, सो हम तुमकौ दीनौ।
'सूरदास' ज्यौ विप्र नारियर, करही बदन कीनौ।।3809।।

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