ऊधौ जा हरि जोग सिखावत।
जोग जुगुति बुधि ज्ञान प्रगट करि, कहि कहि कहा वतावत।।
विद्या दान दुराइ स्रवन मैं, गुप्त मंत्र गुरु देत।
हम गोकुल वै मधुबन माधौ, होत सँदेसनि खेत।।
जौ हरि कृपा करौ दीननि पै, तौ ह्याँ लगि पग धारै।
करि उपदेस क्यौ न दृढ़ हमकौ, फिरि ब्रजनाथ सिधारै।।
दरसन पाइ परसि पद पावन, प्रथम पवित्र करै।
तौ फल सिद्धि होइ ‘सूरज’, गुरु माथै हाथ धरै।।3708।।