ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने।
स्याम तुमहिं ह्याँ कौ नहिं पठयौ, तुम हौ बीच भुलाने।।
ब्रजनारिनि सौ जोग कहत हौ, बान कहत न लजाने।
बड़े लोग न बिबेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।
हमसौ कही लई हम सहि कै, जिय गुनि लेहु सयाने।
कहँ अबला कहँ दसा दिगंबर, मष्ट करौ पहिचाने।।
साँच कहौ तुमकौ अपनी सौ, बूझतिं बात निदाने।
‘सूर’ स्याम जब तुमहिं पठायौ, तब नैकहुँ मुसकाने।। 3521।।