ऊधौ चले स्याम आयसु सुनि, ब्रज नारिनि कौ जोग कह्यौ।
हरि के मन यह प्रेम लहैगौ, वह तौ जिय अभिमान गह्यौ।।
आतुर चल्यौ हरष मन कीन्हे, कृष्न महत करि पठै दियौ।
स्यदन उहै स्याम सब भूषन, जानि परै नँदसुवन बियौ।।
जुवती कहा ज्ञान समुझैगी, गर्व बचन मन कहत चल्यौ।
‘सूर’ ज्ञान कौ मान बढ़ाए, मधुबन के मारगहिं मिल्यौ।। 3452।।