ऊधौ कोउ नाहिन अधिकारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


ऊधौ कोउ नाहिन अधिकारी।
लै न जाहु यह जोग आपनौ, कत तुम होत दुखारी।।
यह तौ बेद उपनिषद मत है, महा पुरुष व्रतधारी।
हम अबला अहीरि ब्रजवासिनि, नाही परत सँभारी।।
को है सुनत कहत हौ कासौ, कौन कथा विस्तारी।
‘सूर’ स्याम कै संग गयौ मन, अहि काँचुली उतारी।।3901।।

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