ऊधौ कह्यौ तिहारौ कीन्हौ।
जिहिं जिहिं भाँति सिखावन दीन्हौ, सोइ बिचारन लीन्हौ।।
नैन मूँदि धरि ध्यान निरंतर, मन देख्यौ दौराइ।
अरुझि रह्यौ नंदलाल प्रेम रस, निमिष न इत उत जाइ।।
जो हम हाथ आवते जानति, लेती सीस चढ़ाइ।
यह लै देहु ताहि फिरि मधुकर, जिन पठए हित गाइ।।
मेरे जान ‘सूर’ के प्रभु तौ, फेरि न लैहै ओऊ।
देखियत परी तिहारे माथै, यह हाँसी दुख दोऊ।।3811।।