ऊधौ कही सु फेरि न कहिऐ।
जौ तुम हमैं जिवायौ चाहत, अनबोले ह्वै रहिऐ।।
प्रान हमारे घात होत है तुम्हरे भाऐ हाँसी।
या जीवन तै मरन भलौ है, करवत लैहैं कासी।।
पूरब प्रीति सँभारि हमारी, तुमकौ कहन पठायौ।
हम तौ जरि बरि भस्म भई तुम, आनि मसान जगायौ।।
कै हरि हमकौं आनि मिलावहु, कै लै चलियै साथै।
‘सूर’ स्याम बिनु तजति है, दोष तुम्हारे माथै।।3607।।