ऊधौ कहियौ यह संदेस -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


ऊधौ कहियौ यह सदेस।
लोग कहत कुबजा की प्रभुता, तुम सकुचहु जनि लेस।।
कबहुँक इत पग पग धारि सिधारहु, हरि उहि सुखद सुबेस।
हमरे मनरजन कीन्हे तै, ह्वैहौ भुवन नरेस।।
तब तुम इत ठहराइ रहौगे, देखौगे सब देस।
नहि बैकुंठ अखिल ब्रह्माडहु, व्रज बिनु सब कृत क्लेश।।
यह किहि मंत्र दियौ नँदनंदन, व्रज तजि भ्रमन विदेस।
जसुमति जननी प्रिया राधिका, देखे औरहुँ देस।।
इतनी कहत कहत स्यामा पै, कछु न रह्यौ अबसेस।
मोहनलाल प्रबाल मृदुल मन, तच्छन करी सुहेस।
को ऊधौ को दुसह विरह ज्वर, को नृप नगर सुरेस।
कैसौ ज्ञान कह्यौ कहि कासौ, किहिं पठ्यौ उपदेस।।
मुख मृदु छवि मुरली रब पूरत, गोरज करबुर केस।
नटनायक गति विकट लटक तब, वन तै कियौ प्रबेस।।
अति आतुर अकुलाइ धाइ पिय, पोछत नयन कुसेस।
कुम्हिलानी मुखपद्द परस करि, देखति छबिहि विसेस।।
‘सूर’ सोम सनकादि इंद्र अज, सारद निगम महेस।
नित्य बिहार सकल सुर भ्रम गति, कह गावै मुख सेस।।4078।।

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