ऊधौ करि रहीं हम जोग।
कहा एतों बाद ठान्यौ, देखि गोपी भोग।।
सीस सेलीकेस, मुद्रा, कानवीरी वीर।
विरह भस्म चढाइ बैठी, सहज कथा चीर।।
हृदय सिगी टेर मुरली, नैन खप्पर हाथ।
चाहती हरि दरस भिच्छा, देहिं दीनानाथ।।
जोग की गति जुगति हम पै, ‘सूर’ देखौ जोइ।
कहत हम सौ करन जोग, सु जोग कैसौ होइ।।3694।।