ऊधौ कपट रूप के मूल।
हमकौ आए जोग सिखावन, कहा जोग कौ सूल।।
स्याम बिसासी कै सँग तुमहूँ ह्वै गई भूल।
हम तौ डारी बिरह जुर अब धौ कहाँ लगावै धूल।।
जोग जाइ तिनही किन सिखवहु, रहत स्याम कै कूल।
निसि दिन करत बिलास मधुप सँग, ज्यौ बेली तरु फूल।।
जाइ कहौ उन कुँवर लड़िलै प्रेमकथा निसि तूल।
'सूरदास' हरि बिनु को काढ़ै, अतरगति कौ सूल।। 187 ।।