ऊधौ ! स्याम बड़े ही धूत।
कारौ तन, मनहू अति कारौ, कारी सब करतूत॥
मीठी तान सुनाइ मुरलि की, मीठी करि-करि बात।
हँसि-हँसि कै सरबस हरि लीन्हौ, भीतर सौं करि घात॥
बार-बार करि सपथ कह्यौ-’हौं तुम्हरौ, तुम सब मेरी’।
कितव त्याग दीन्हीं नगन्य गनि, बिलपतहू नहिं हेरी॥
मुँह मीठौ, मन भर्यौ जहर-सौं, निठुर निरदई पूरे।
जरे घावपर नौन लगावन पठयौ तुमहि धतूरे॥
मति तुम गुन बरनौं उन के, मति करौ हमहिं उपदेस।
गुन-निधि के सब गुन हम जानैं, हिय कठोर, मृदु भेस॥
भयौ बिधाता बाम, तदपि हिय सुरति टरत नहिं टारी।
दरसन-हित नित रोवत-कलपत बयस बीति रहि सारी॥