ऊँचौ गोकुल नगर, जहाँ हरि खेलत होरी।
चलि सखि देखन जाहिं, पिया अपने की खोरी।।
बाजत ताल, मृदंग और किन्नरि की जोरी।
गावति दै दै गारि, परस्पर भामिनि भोरी।।
बूका सुरँग अबीर उड़ावत, भरि भरि झोरी।
इत गोपिनि को झुंड, उतहिं हरि-हलधर-जोरी।।
नवल छबीले लाल, तनी चोली की तोरी।
राधा चली रिसाइ, ढीठ सौ खेलै कोरी।।
खेलत मै कस मान, सुनहु वृषभानुकिसोरी।
'सूर' सखी उर लाइ हँसति, भुज गहि झकझोरी।।2870।।