उपँगसुत हाथ दई हरि पाती।
यह कहियौ जसुमति मैया सौ, नहिं बिसरत दिन राती।।
कहत कहा बसुदेव देवकी, तुमकौ हम हैं जाये।
कंस त्रास सिसु अतिहिं जानिकै, ब्रज मैं राखि दुराये।।
कहै बनाइ कोटि कोउ बातै, कही बलराम कन्हाई।
‘सूर’ काज करिकै दिन कछु मैं, बहुरि मिलैंगे आई।। 3437।।