उधौ देखौ यह गति मोर।
सुधि बुधि चिंता सबै हिरानी, निरखि स्याम की ओर।।
नैन प्रान मेरे हरि सौ लागे, ज्यौ निसि चंद चकोर।
बिनु दरसन अब कल न परति है, मारत मदन मरोर।।
प्रीति के बान लगै मन मोहन, निकसि गए हिय फोर।
औषधि करत घाव नहि पूजत, बिनु वा नंदकिसोर।।
गरजत गगन चहूँ दिसि धावत, स्याम घटा घन घोर।
ता ऊपर बिरहिनि मारन कौ, कुहुक उठत है मोर।।
कुहुकि कुहुकि कोकिल अब जारति अरु दादुर दल सोर।
क्यौ जीवै बिरहिनि ब्रज बनिता, विरह बिथा अति जोर।।
जैसै मीन परत बस बंसी, मदन करत झकझोर।
भई अधीन छीन तन व्याकुल, तलफतिं ब्रज की खोर।।
आवन अवधि आस जो दै गए, मग जोवतिं उठि भोर।
'सूरदास' अबला बिनवति है, ल्यावहु स्याम निहोर।। 189 ।।