उधौ जोग तबहिं तै जान्यौ।
जा दिन तै सुफलक सुत कै सँग, रथ ब्रजनाथ पलान्यौ।।
ता दिन तै सब छोह मोह गयौ, सुतपति हेत भुलान्यौ।
तजि माया संसार सबनि कौ, ब्रज जुवतिन व्रत ठान्यौ।।
नैन मूँदि, मुख मौन धरि, तन तप तेज सुखान्यौ।
नंदनँदन मुरली मुख धारै, वहै ध्यान उर आन्यौ।।
सोइ रूप जोगी जिहिं भूले, जो तुम जोग बखान्यौ।
ब्रह्मा हू पचि मुए ध्यान करि, अंतहु नहि पहिचान्यौ।।
कहौ सु जोग कहा लै कीजै, निरगुन जो नहि जान्यौ।
‘सूर’ वहै निज रूप स्याम कौ, है मन माहँ समान्यौ।।3696।।