उठे कहि माधौ इतनी बात।
जिते मान सेवा तुम कीन्हौ, बदलौ दयौ न जात।।
पुत्र हेत प्रतिपार कियौ तुम, जैसै जननी तात।
गोकुल बसत हँसत खेलत मोहि, द्यौस न जान्यौ जात।।
होहु बिदा घर चाहु गुसाई, माने रहियौ नात।
ठाढ़ौ थक्यौ उतर नहिं आवै, लोचन जल न समात।।
भए बलहीन खीन तन कपित, ज्यौ वयारि बस पात।
धकधकात हिय बहुत ‘सूर’ उठि, चले नद पछितात।। 3124।।