उठीं सखी सब मंगल गाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गांधार


उठीं सखी सब मंगल गाइ।
जागु जसोदा, तेरैं बालक उपज्यौ कुँवर कन्हाइ।
जो तू रच्यौ-सच्यौ या दिन कौं, सो सब देहि मँगाइ।
देहि दान बंदीजन गुनि-गन, ब्रज-बासिनि पहिराइ।
तब हँसि कहति जसोदा ऐसैं, महरहिं लेहु बुलाइ।
प्रगट भयौ पूरब तप कौ फल, सुत-मुख देखौ आइ।
आए नंद हँसत तिहिं औसर, आनँद उर न समाइ।
सूरदास ब्रजवासी हरषे, गनत न राजा-राइ॥14॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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