उघटत स्याम नृत्यतिं नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग केदारी


उघटत स्याम नृत्यतिं नारि।
धरे अधर उपंग उपजै, लेत हैं गिरिधारि।।
ताल, मुरज, रबाब, बीना, किन्नरी रस सार।
सब्द संग मृदंग मिलवत, सुघर नंद कुमार।।
नागरी सब गुननि आगरि, मिलि चलतिं पिय-संग।
कबहुँ गावतिं कबहुँ नृत्यतिं, कबहुँ उघटतिं रंग।।
मंडली गोपाल-गोपी, अंग-अंग अनुहारि।
सूर प्रभु घन, नवल भामिनि, दामिनी, छबि डारि।।1059।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः