उघटत स्याम नृत्यतिं नारि।
धरे अधर उपंग उपजै, लेत हैं गिरिधारि।।
ताल, मुरज, रबाब, बीना, किन्नरी रस सार।
सब्द संग मृदंग मिलवत, सुघर नंद कुमार।।
नागरी सब गुननि आगरि, मिलि चलतिं पिय-संग।
कबहुँ गावतिं कबहुँ नृत्यतिं, कबहुँ उघटतिं रंग।।
मंडली गोपाल-गोपी, अंग-अंग अनुहारि।
सूर प्रभु घन, नवल भामिनि, दामिनी, छबि डारि।।1059।।