इहिं मुरली मन हरयौ हमारौ -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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इहिं मुरली मन हरयौ हमारौ, कमल नैन जदुराई हो।
एक अचंभौ सखि मैं देख्यौ, बृंदावन मैं जाई हो।।
बिच गोपी बिच माधौ सोभित, रास रच्यौ बन ठाई हो।
बाजत बेनु मृदंग मधुर धुनि, लीला अगम दिखाई हो।।
मोहे नर सुरअसुर नाग मुनि ब्योम विमाननि छाई हो।
दीन दयाल ‘सूर’ के स्वामी, चलु सखि देखि न जाई हो।। 55 ।।

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