इहिं मुरली कछु भलौ न कीनौ।
अधर-सुधा-रस-अंस हमारौ, बांटि बांटि सबहिनि कौं कीनौ।।
बीरुध, तृन द्रुम सैल सरिति तट, सींचति है बसुधा मृग मीनौ।
जानै स्वाद कहा श्री मुख कौ छूंछौ हियौ सार-बिनु हीनौ।।
जा रस कौं कालिंदी कैं तट, पूजत गौरि भयौ तन छीनौ।
सूर सु रस इहिं परसि कुटिल-मति, सबहिन कैं देखत हरि लीनौ।।1306।।