इहिं बिधि वेद-मारग सुनौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


इहिं बिधि वेद-मारग सुनौ।
कपट तजि पति करौ पूजा, कहा तुम जिय गुनौ।।
कंत मानहु भव तरौगी, और नाहिं उपाइ।
ताहि तजि क्यौं बिपिन आई, कहा पायौ आइ।
बिरध अरु बिन भागहूँ कौ, पतित जो पति होइ।
जऊ मूरख होइ रोगी, तजै नाहीं जोइ।।
यहै मैं पुनि कहत तुम सौं, जगत मैं यह सार।
सूर पति, सेवा बिना क्यौं, तरौगी संसार।।1016।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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