इसी भाँति तुम निस्चै ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग बिहाग - तीन ताल


इसी भाँति तुम निस्चै ही हौ इतने अर्थ ’लबार’।
जो गुन-रूप-हीन मेरे गुन गाते बारंबार॥
निस्चै ही ’लंपट’ हौ जो तुम करौ सबहिं सुख-दान।
नित ’नव-रस-लोभी’ तुम, तुम कूँ प्रेम-तव-कौ ग्यान॥
कितव, लँगर, साँचे तुम छल सब ठगत फिरत संसार।
सुखमय निज निरमल रस दै तुम लेते स्वयं उबार॥
कोटि-कोटि है सक्ति-सरूपा प्यारिन कौ बिस्तार।
मन रख, बने कांत तुम सबके प्रियतम एक उदार॥
मो तें अधिक सकल सुंदर सुचि, मधुर सील गुनधाम।
सहज समर्पित जीवन, अति सुखदायिनि परम ललाम॥
सब तें दीन-हीन हौं कलुषित, मो में इतनो मोह ?
बिनु गुन मानत गुन, स्वभाव बस परानंद-संदोह!॥
तुम्हरे मुख गुन-सुंदरता सुन सुख मानत मम चित्त।
काम, कलंक, बासना मन की, यहै एक है बित्त॥
मुँह न दिखाऊँ तुमहि, कहा मैं करूँ किंतु असहाय।
हिय बिदरत तुव दरसन बिन छिन, जरत जोर जिय हाय!॥’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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