इनही भूलि रहे सब भोगी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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इनही भूलि रहे सब भोगी।
बस कीन्हें ब्राह्मन अरु जोगी।।
बस किए ब्राह्मन बहुत जोगी, छत्रपति केते कहौ।
औरौ जगत के जीव जल थल, गनत सुनत न सुधि लहौं।।
ते परम आतुर काम कातर, निरखि कौतुक नित नए।
इहिं भाँति समधिनि संग, निसि दिन फिरत भ्रम भूले भए।।

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