इनहीं धौं बूझौ यह लेखौ।
कहा कहैंगे स्रवननि सुनियै, चरित नैंकु तुम देखौ।।
मन मन हरष भई सब जुवती, सुख ये बात चलावतिं।
ज्यौं ज्यौं स्याम कहत मृदु बानी, त्यौं-त्यौं अति सुख पावतिं।।
कोउ काहू कौ भेद न जानति, लोक'सकुच ऊर मानत।
सूरदास प्रभु अंतरजामी, अंतर की गति जानत।।1527।।