इतौ स्रम नाहिंन तबहिं भयौ।
सुनि राधिके जितौ स्रम मोकौ, तै इहिंमा न दयौ।।
धरनी धरि, बिधि वेद उधारयौ, मधु सौ सत्रु हयौ।
द्विज नृप कियौ, दुसह दुख मेटयौ, बलि कौ राज लयौ।।
तोर्यौ धनुष स्वयंबर कीन्हौ, रावन अजित जयौ।
अध, बक, बच्छ, अरिष्ट, केसि मथि, दावानल अँचयौ।।
गुरुसुत मृतक काज निजु आए, सागर सोध लयौ।
तियबपु धर्यौ, असुर सुर मोहे, को जग जो न द्रयौ।।
जानौ नहीं कहा या रस मै, जिहिं सिर सहज नयौ।
'सूर' सुबल अब तोहिं मनावत, मोहिं सब बिसरि गयौ।।2815।।