इतने जतन काहे कौ किए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


इतने जतन काहे कौ किए।
अपने जान जानि नँदनंदन, बहुत भयनि सौ राखि लिए।।
अघ बक वृषभ बच्छ बधन तै, व्याल जीति दावागि पिए।
इंद्र मान मेट्यौ गिरि कर धरि, छिन छिन प्रति आनद दिए।।
हरि बिछुरन की पीर न जानी, बचन मानि हम बादि जिए।
'सूरदास' अब वा लालन बिनु, कह न सहत ए कठिन हिए।। 3205।।

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