इतना होते ही वह टूटा स्वप्न -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग ईमन - तीन ताल


इतना होते ही वह टूटा स्वप्न दूसरा भी तत्काल।
खोले नहीं नेत्र, वह रही सोचती निज मनमें क्षण-काल॥
पूर्व स्वप्नके अंदर ही यह दीखा था फिर स्वप्न नवीन।
स्वप्न देख जब राधा तुरत हो गयी थी बेहद गमगीन॥
सो‌ई थी वस्तुतः कुञ्ज में सिर रक्खे प्रियतमकी गोद।
नींद आ गयी थी उसको, प्रिय देख रहे थे बदन समोद॥
दीख पड़ी जब प्यारी मुख-‌आकृतिपर भावोंकी छाया।
हिले जगानेको प्रियतम, था मन उनका कुछ घबराया॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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