आवो सहेल्‍या रली करां हे -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अपना मार्ग

राग हमीर


आवो सहेल्‍या रली कराँ हे, पर घर गवण निवारि ।
झूठा मा‍णिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति ।
झूठा सब आभूषण री, साँची पियाजी री पोति ।
झूठा पाट पटंबरारे झूठा दिखणी चीर ।
साँची पियाजी री गूदड़ी, जामे निरमल रहे सरीर ।
छप्‍पन भोग बुहाइ दे हे, इन भोगनि में दाग ।
लूण अलूणो ही भलो हे, आणे पियाजी को साग ।
देखि विराणै निवाँण कूँ हे, क्‍यूँ उपजावै खीज ।
कालर अपणो ही भलो हे, जामें निपजै चीज ।
छैल विराणो लाख को हे, अपणे काज न होइ ।
ताके सँग सीधारताँ हे, भला न कहसी कोइ ।
वर हीणो अपणो भलो हे कोढी कोइ ।
जाके सँग सीधारताँ हे, भला कहै सब लोइ ।
अविनासी सूँ बालबा हे, जिनसूँ साँची प्रीत ।
मीराँ कूँ प्रभू मिल्‍या हे, एही भगति की रीत ।।25।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सहेल्या = सखियो, सहेलियों। रकी कराँ = केलि करें, आनन्द उठावे। ( देखो आक की कली न रली करै अली अली जिय जानि - बिहारीलाल )। पर घर गवण = दूसरों के घर आना जाना। निवारी = छोड़कर। जगमग जोति = चमकीली भड़कीली रोशनी। आभूखणा = आभूषण, गहने। पियाजी री पोति = प्रियतम परमात्मा की माला। पाटपटंवरा = रेशमी वस्त्र। दिखणी = दक्षिणी दक्षिण देश ( विजयानगरम् ) में बनने वाला एक बहुमूल्य वस्त्र। दिखणी चीर = दक्षिणी साड़ी। जामें = जिसमें, जिसे धारण कर। साँची = सच्ची, वस्तुतः उत्तम। छप्पन भोग = छप्पन प्रकार के व्यंजन। बुहाइदे = बहा दो। भोगिन में = व्यन्जनों में। दाग = कालिमा, दोष। लूण अलूणों ही = नमक पड़ा था बिना नमक का भी। विराणै = पराये, विराने। निर्वाण = नीची उपजाऊ भूमि। उपजावे = मन में लाता है। खीज = द्वेष, डाल। क्यूँ...खीज = क्यों चिढ़ती वा बुरा मानती हो। काकर = कड़ी जमीन जिसमें बहुत कम पैदा हो सके। निपजै = पैदा होती है। चीज = अच्छी वस्तु। छैल = रसिक, युवा पुरुष। विराणो = पराया। लाखकों = अनमोल। काज = काम का। सीधरता = जाते, जाने पर। हीणो = हीन, साधारण। वर = पति। लोई = लोग। सूँ = सदृश। बालवा = बल्लभ, प्रियतम। एहो = इसी। रीत = रीति या ढंग से।

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