आवत मोरी गलियन में गिरधारी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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मिलन लीला


आवत मोरी गलियन में गिरधारी,
मैं तो छुप गई लाज की मारी ।। टेक ।।
कुसुमल पाग केसरिया जामा, ऊपर फूल हजारी ।
मुकट ऊपर छत्र बिराजे, कुंडल की छबि न्यारी ।।1॥
केसरी चीर दरयाई को लेंगो, ऊपर अँगिया भारी ।
आवत देखी कि‍सन मुरारी, छिप गई राधा प्यारी ।।2॥
मोर मुकट मनोहर सोहै, नथनी की छबि न्यारी ।
गल मोतिन की माल बिराजे, चरण कमल बलिहारी ।।3॥
ऊभी राधाप्यारी अरज करत है, सुणजे कि‍‍सन मुरारी ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, चरण कमल पर वारी ।।4।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आवत = आते रहे। लाज... मारी = लज्जित होकर। कुसुमल = कुसुंभी रंग की, लाल। जामा = पहनावा। हजारी = सहस्र दलों वाले। दरयाई = दरियाई अर्थात रेशमी पतली साटन। लेंगो = लहँगा। अँगिया = चोली। भारी = बड़ी, उत्तम। सुणजे = सुनिये।

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