आली हौं गई ही आज भूलि बरसाने कहूँ -पद्माकर

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आली हौं गई ही आज भूलि बरसाने कहूँ -पद्माकर


आली हौं गई ही आज भूलि बरसाने कहूँ,
तापै तू परै है पदमाकर तनैनी क्यों ।
व्रज वनिता वै वनितान पै रचै हैं फाग,
तिनमे जो उधमिनि राधा मृगनैनी यों।
छोरि डारी केसर सुबेसर बिलोरि डारी,
बोरि डारी चूनरि चुचात रंग रैनी ज्यों।
मोहि झकझोरि डारी कचुँकी मरोरि डारी,
तोरि डारी कसनि बिथोरि डारी बैनी त्यों।

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