आली म्हांने लागे बृन्दाबन नीको -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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व्रज भूमि


राग सारंग





आली म्हांने लागे बृन्दाबन नीको ।।टेक।।
घर-घर तुलसी ठाकुर पूजा, दरसण गोविंद जी को ।
निरमल नीर बहत जमना में, भोजन दूध दही को ।
रतन सिंघासण आप बिराजे, मुगट धरयो तुलसी को ।
कुंजन-कुंजन फिरत राधिका, सबद सुणत मुरली को ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको ।।163।।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. म्हांने = मुझे। नीको = भला, मनोहर। ठाकुर = भगवान जमना में = यमुना में। दरसण = दर्शन। आप = स्वयं श्रीकृष्ण। मुगट = मुकुट। धर्यो = धारण किये हुए। धीको = नीरस। नर = मानव जीवन।

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