आय दूती ने बात कही -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग सारंग - तीन ताल


आय दूती ने बात कही॥
चंद्रावलि की कुंज सिधारे साँवर आजु सही।
सुनत प्रफुल्लित भ‌ई राधिका धीरज सहज गही॥
उठी अमित आनंद-लहर उर मानस-सिद्धि लही।
चंद्रावलि सम नहीं कितहुँ को‌उ सुंदरि अन्य मही॥
मधुर सुहासिनि चतुर विलासिनि, गुन-समूह उमही।
मैं नित ही कहती पिय तैं, ’तुम क्यौं न जा‌उ उतही’॥
सुनी नायँ पिय बिनय कबहुँ उलटे मो कूँ उलही।
दूती! भयो विधाता दच्छिन मन की होय रही॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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