आयौ रघुनाथ बली, सीख सुनौ मेरी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
आयौ रघुनाथ बली, सीख सुनौ मेरी।
सीता लै जाइ मिलौ बात रहै तेरी।
तैं जु वुरौ कर्म कियौ, सीता हरि आयौ।
घर बैठे वैर कियौ, कोपि राम आयौ।
चेतत क्यौं नाहिं मूढ़ सुनि सुबात मेरी।
अजहूँ नहिं सिंधु बाँध्यौ़, लंका है तेरी।
सागर कौ पाज बाँधि, पार उतरि आवैं।
सैना कौ अंत नाहिं, इतनौ दल ल्यावैं।
देखि तिया कैसौ बल, करि तोहिं दिखराऊँ।
रीछ कीस वस्य करौं, रामहिं गहि ल्याऊँ।
जानति हौं, बली बालि सौं न छूटि पाई।
तुम्है कहा दोष दीजै, काल-अवधि आई।
बलि जब बहु जज्ञ किए, इंद्र सुनि सकायौ।
छल करि लइ छीनि मही, बामन ह्वै धायौ।
हिरनकसिप अति प्रचंड, ब्रह्मा बर पायौ।
तब नृसिंह रूप धरयौ, छिन न विलँव लायौ।
पाहन सौं बाँधि सिंधु, लंका गढ़ घेरैं।
सूर मिलि विभीषनै दुहाइ राम फेरैं॥118॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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