आयौ घोष बड़ौ ब्यौपारी।
खेप लादि गुरु ज्ञान जोग की, ब्रज मैं आनि उतारी।।
फाटक दै के हाटक माँगत, भोरौ निपट सुधारी।
धुरही तै खोटौ खायौ है, लिये फिरत सिर भारी।।
इनकै कहे कौन डहकावै, ऐसी कौन अनारी।
अपनौ दूध छाँड़ि को पीवै, खार कूप कौ बारी।।
ऊधौ जाहु सवारै ह्याँ तै, बेगि गहरु जनि लावहु।
मुख मागौ पैहौ ‘सूरज’ प्रभु, साहुहि आनि दिखावहु।।3965।।