आयौ आयौ पिय ऋतु बसंत। दंपति मन सुख बिरह अंत।।
फाग खेलावहु संग कत। हा हा करि तृन गहति दंत।।
तुरत गए हरि लै मनाइ। हरषि मिले उर कंठ लाइ।।
दुख डारयौ तुरतहिं भुलाइ। सो सुख दुहुँ कै उर न माइ।।
रितु बसंत आगमन जानि। नारिन राखी मान बानि।।
'सूरदास' प्रभु मिले आनि। रस राख्यौ रतिरंग ठानि।।2851।।