आयसु पाइ तुरतही धाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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आयसु पाइ तुरतही धाए। अपनी सैना सबनि बुलाए।।
कह्यौ सबनि ब्रज ऊपर धावहु। घटा घोर करि गगन छपावहु।।
मेघबर्त्त जलबर्त्तक आगे। और मेघ सब पाछे लागे।।
गरजि उठे ब्रज ऊपर जाई। सब्द कियौ आघात सुनाई।।
ब्रज के लोग डरे अति भारी। आजु घटा देखियत हैं कारी।।
देखत-देखत अति अधिकायौ। नैंकुहि मैं रबि गगन छपायौ।।
ऐसे मेघ कबहुँ नहिं देखे। अति कारे काजर अवरेखे।।
सुनहु सूर ये मेघ डरावन। ब्रजबासी सब कहत भयावन।।930।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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