आपु देखि पर देखि मधुकर, तब औरनि सिख देहु।
बीतैंगी तबहीं जानैंगौ, महा कठिन है नेहु।।
मन जु तुम्हारौ हरि करननि है, तन लै गोकुल आयौ।
नंदनँदन के बिछुरे, कहि कौनै सचु पायौ।।
गोकुल रहहु जाहु जनि मथुरा, झूठौ माया मोहु।
गोपी कहै ‘सूर’ सुनि ऊधौ, हमसे तुमसे होहु।।3613।।