आपु कदम चढ़ि देखत स्याम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सूही


आपु कदम चढ़ि देखत स्याम।
बसन अभूषन सब हरि लीन्हे, बिना बसन जल-भीतर बाम।।
मूँदन नैन ध्यान धरि हरि कौ, अंतरजामी लीन्ही जान।
बार-बार सबिता सौं माँगति हम पावैं पति स्याम सुजान।।
जल तैं निकसि आइ तट देख्यौ, भूषन चीर तहाँ कछु नाहिं।
इत-उत देखि चकित भईं सुंदरि, सकुचि गईं फिरि जल ही माहिं।।
नाभि प्रजंत नीर मैं ठाढ़ी थर-थर अँग काँपतिं सुकुमारि।
को लै गयौ बसन आभूषन, सूर स्याम उर प्रीति बिचारि।।785।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः