आपुन भईं सबै अब भोरी।
तुम हरि कौ पीतांबर झटक्यौ, उन तुम्हरी मोतिनि लर तोरी।।
माँगत दान ज्वाब नहिं देतीं ऐसी तुम जोबन की जोरी।
डर नहिं मानतिं नंद-नँदन कौ, करति आन झकझोरा झोरी।।
इक तुम नारि गँवारि भली हौ, त्रिभुवन मैं इनकी सरि को री।
सूर सुनहु लैहैं छँड़ाइ सब अबहिं फिरौगी दौरी दौरी।।1534।।