आधौ मुख नीलांबर सौ ढँकि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी


आधौ मुख नीलांबर सौ ढँकि, बिथुरी अलकै सोहै।
एक दिसा मनु मकर चाँदनी, घन बिजुरी मन मोहै।।
कबहुँ केस पाछे लै डारति, निकसन ससि ज्यौ जोहै।
'सूर' स्याम प्यारी छबि देखत, त्रिभुवन उपमा को है।।2188।।

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