आज अनारी ले गयो सारी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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चीर हरण लीला
राग काफी






आज अनारी ले गयो सारी, बैठी कदम की डारी, हे माय ।। टेक ।।
म्हांरे गेल पड्यो गिरधारी, हे माय, आज अनारी.।
मैं जल जमुना भरन गई थी, आगयो कृश्न मुरारी, हे माय ।
ले गयो सारी अनारी म्हारी, जल मैं ऊभी उघारी, हे माय ।
सखी साइनि मोरी हँसत हैं, हँसि हँसि दे मोहि तारी, हे माय ।
सास बुरी अर नणद हठीली, लरि लरि दे मोहि गारी, हे माय ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर चरण कमल की वारी, हे माय ।।171।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनारी = अनाड़ी, नादान, नासमझ कृष्ण। गेलपड्यो = मार्ग में बाधा स्वरूप आ खड़ा होता है, जड़ में लगा हुआ है। जल मैं = जल में। ऊभी = नाक तक पानी में खड़ी। साइनि = सदा साथ वा सहायता देने वाली सखी, सहेली। दे = पीटती वा बजाती है। अर = अरु, और। लरिलरि = लड़ती झगड़ती है।

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