आजु हौ अधिक हँसी मेरी माई।
कामबिबस मोसौ रति बाढ़ी, अवलोकत मम झाँई।।
रवि-ससि-कांति सु उग भवन मैं, ठाढ़ी ही डाठाई।
विस्मय बढ्यौ प्रतिबिंब प्रतिहि प्रति, अंक दई जदुराई।।
कर अंचल मुख मूँदि रही ही दीन देखि हँसि आई।
'सूरदास' प्रभु निहचै जानी, तबहिं उलटि उर लाई।।2673।।