आजु सखी अरुनोदय मेरे, नैननि कौ धोख भयौ।
की हरि आजु पथ इहिं गवने, स्याम जलद की उनयौ।।
की बग पाति भाँति, डर पर की मुकुत माल वहु मोल।
कीधो मोर मुदित नाचत, की बरह मुकुट की डोल।।
की घनघोर गँभीर प्रात उठि, की ग्वालनि की टेरनि।
की दामिनि कौधति चहुँ दिसि, की सुभग पीत पट फेरनि।।
की बनमाल लाल उर राजति, की सुरपति धनु चारु।
'सूरदास' प्रभुरस भरि उमँगी, राधा कहति बिचारु।।2058।।