आजु लखी इक वाम नई सी।
ठाढी हुती अंगना द्वारै, बिधि बिरची किधौ मदन मई सी।।
हम तनु चितै, सकुचि अंचल दियौ, वारिज मुख पर वारि बई सी।
मनु द्वै ढग चले है दृग (नि) लै, ललित बलित हरि मनहि नई सी।।
जनु पावस ते निकसि दामिनी, नैकु दमकि दुरि ओट लई सी।
भोजन, भवन कछू नहि भावत, तगत पलक मनु करत खई सी।।
यह मूरति कबहूँ नहिं देखी, नेरी आँखिनि कछु भूल भई सी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन कौ, मनमोहन मोहिनि अंचई सी।।2113।।