आजु राधिका भोरहीं जसुमति कैं आई।
महरि मुदित हँसि यौं कह्यौ, मथि भान-दुहाई।।
आयसु लै ठाढ़ी भई, कर नेति सुहाई।
रीतौ माठ बिलौवई, चित जहाँ कन्हाई।।
उनके मन की कहा कहौं, ज्यौं दृष्टि लगाई।
लैया नोई वृषभ सौं, गैया चतुराई।।
नैननि मैं जसुमति लखी, दुहुँ की चतुराई।
सूरदास दंपति-दसा, कापै कहि जाई।।715।।