आजु बन मोरनि गायौ आइ।
जब तै स्रवन परयौ सुनि सजनी, तब तै रह्यौ न जाइ।।
ब्रज तै बिछुरे मुरलिमनोहर, मनहुँ ब्याल गयौ खाइ।
औषद वैद गरुडियौ हरि नहि, मानै मंत्र दुहाइ।।
चातक पिक दुख देत रैनि दिन, पिय पिय वचन सुनाइ।
'सूरदास' हम तौ पै जीवहि, जौ मिलिहै हरि आइ।। 3327।।